Monday, December 23, 2024

शुभ व सतकार्यों को नहीं, अशुभ कार्यों को कल पर टालो- श्री हरि चैतन्य महाप्रभु

गढीनेगी । प्रेमावतार, युगदृष्टा, श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर एंव विश्व विख्यात संत स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने यहां श्री हरि कृपा धाम आश्रम में उपस्थित विशाल भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि सम्मान प्राप्ति को लक्ष्य कभी नहीं बनाना चाहिए वरना कितना भी सम्मान प्राप्त होने के बावजूद थोड़े से कहीं से ना मिला तो भी क्षुब्ध ही रहेंगे। हर कार्य सोच समझ कर करना चाहिए। किसी से मित्रता करनी हो तो सोच विचार कर करनी चाहिए। क्रोध अपमान किसी का अनिष्ट अप्रिय व पाप कर्म करने में ज्यादा से ज्यादा देर करनी चाहिए। किसी के अपराध करने पर उसे शीघ्र दंड नहीं देना चाहिए, बहुत सोच समझ कर ही देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि दूसरों को नुकसान पहुंचाने वाले का अपना ही नुकसान होता है। यदि दूसरा हमें नुकसान पहुंचाए तो हम बचाव की स्थिति अपनाएं आक्रमक दृष्टि ना होने दें। क्षमाशील बनें। क्षमा कायरों का नहीं अपितु वीरों का आभूषण है। मानव पर जगत व जगतपति दोनों का अधिकार है । लेकिन मानव का इन पर अधिकार मानना अज्ञानता है । अपने दिव्य प्रवचनों में भक्तों को कृतार्थ करते हुए उन्होंने कहा कि जगत की चिंता करे, जगतपति। जगत को सुधारने की चिंता यदि हम करें तो जगत सुधरेगा या नहीं पर हम जरूर बिगड़ जाएंगे। समाज सुधारक नहीं समाज सेवक बनने का प्रयास करें। मानव जीवन की ही महिमा है कि वह अपने लिए, समाज के लिए व परमात्मा के लिए उपयोगी हो सकता है। त्याग पूर्वक शांत होकर अपने लिए उदारता पूर्वक सेवा करके समाज के लिए व आत्मीयता पूर्वक प्रेम करके परमात्मा के लिए उपयोगी होता है। शांत उदारवाद प्रेमी भक्त हो जाना यह मानव जीवन की ही महिमा है।

उन्होंने कहा कि अधर्माचरण करने वाले कुमार्गगामी लोगों का संग त्यागकर, जितेंद्रिय, श्रेष्ठ महापुरुषों का संग व उनकी सेवा करके अपने जीवन को कल्याणमय बनाएं। क्योंकि सत्पुरुषों का आचरण व कार्य सदैव अनुकरणीय होता है। उन्होंने कहा कि सत्संग का प्रकाश हमारे अंतर्मन को प्रकाशित करता है और हमें भी उस ज्ञान रूपी प्रकाश को अपने अंतर मन में धारण कर परमपिता परमेश्वर को पाने का प्रयास करना चाहिए। मगर जब तक सत्य का संग नहीं होगा सत्संग से भी कोई लाभ प्राप्त हो नहीं सकेगा। जिस प्रकार सूरज की किरणें हमें तब तक लाभ नहीं पहुंचा सकती जब तक कि हमारे घरों की खिड़की दरवाजे बंद रहेंगे। ठीक उसी प्रकार हम गुरु व परमात्मा की कृपा के अधिकारी तभी बन सकते हैं जबकि हम उनके द्वारा दिए गए ज्ञान रूपी प्रकाश को अपने अंतर्गत में उतारेंगे।

अपने धाराप्रवाह प्रवचनों से उन्होंने सभी भक्तों को मंत्रमुग्ध व भावविभोर कर दिया । सारा वातावरण भक्तिमय हो गया व हरिबोल की धुन में सभी भक्तजन झूम झूम कर नाचने लगे।

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