उज्जैन। द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण उज्जैन के गुरुश्रेष्ठ सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण करने उज्जैन आए थे। भगवान श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलदाऊ के साथ सांदीपनि आश्रम में चौंसठ दिन रहे। वे बलदाऊ के साथ मथुरा से रणथंबौर कोटा के रास्ते उज्जैन पहुंचे थे। उज्जैन के विद्वानों ने पुरातात्विक व साहित्यिक प्रमाणों के आधार पर श्री कृष्ण के मथुरा से उज्जैन पहुंचने वाले मार्ग की खोज कर ली है। अब मध्य प्रदेश शासन इस मार्ग को ‘श्रीकृष्ण गमन पथ’ के रूप में विकसित करने जा रहा है। मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव ने भोपाल में इसकी घोषणा की है। पुराविद् डा. रमण सोलंकी ने बताया कि मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव 18 साल पहले ही इस दिशा में काम शुरू कर चुके हैं। उन्होंने श्रीकृष्ण गमन पथ की खोज के लिए पुराविद व साहित्यकार स्व. डा. श्यामसुंदर निगम की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था।इसमें पुराविद डा.भगवतिलाल राजपुरोहित, पुराविद डा. रमण सोलंकी, साहित्यकार डा. केदारनारायण जोशी के साथ पुरातत्व व साहित्य से जुड़े अनेक विद्वान व शोधार्थी शामिल थे। समिति ने लगातार पुरातत्व व साहित्य प्रमाणों के आधार पर श्रीकृष्ण गमन पथ की खोज की। इन्हीं प्रमाणों के आधार पर विद्वानों ने तय किया कि भगवान श्रीकृष्ण मथुरा से मेहंदीपुर बालाजी, रणथंबौर, दंडगढ़, कोटा के रास्ते छोटे-छोटे गांवों से होते हुए उज्जैन पहुंचे थे। विद्वानों का मत है कि भगवान श्रीकृष्ण तीन बार उज्जैन आए थे। पहली बार शिक्षा ग्रहण करने, दूसरी बार रुक्मिणी विवाह के लिए तथा तीसरी बार उज्जैन की राजकुमारी मित्रवृंदा से विवाह करने हेतु आए थे। आगे के मार्ग की खोज का कुछ काम शेष है। जल्द ही संपूर्ण पथ गमन को एक सर्किट के रूप में चिह्नित कर लिया जाएगा।